Friday, July 12, 2019

विचार

छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध ।
-व्योम
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उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन।
-व्योम
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कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना।
-कमलेश भट्ट कमल
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मेरा संकल्प
मंझसे भी बड़ा
हारूँगा नहीं।
-कमलेश भट्ट कमल
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सूर्य ज़िन्दा है
धुन्ध के उस पार
निराशा कैसी ?
-कमलेश भट्ट कमल

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जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रम-जल ने
दादी की हँसुली ने माँ की पायल ने
उस कच्चे घर की कच्ची दीवारों पर
मेरी टाई टँगने में कतराती है।
-कुँअर बेचैन
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बेटियाँ पावन ऋचाएँ हैं
बात जो मन की
कभी खुलकर नहीं करतीं।
-कुँअर बेचैन
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दुनिया में दो तरह के अंधविश्वास हैं-
एक तो वे जो बिना जाने ही किसी मान्यता का अपना लेते हैं,
एक वे जो बिना जाने ही कि मान्यता को नकार देते हैं।
-स्वामी विवेकानन्द
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‘‘ भगवान सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था इसलिए उसने सर्वत्र माताएँ दर्शाईं।’’
-बाल्ज़ाक
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ष्शास्त्रज्ञोऽप्लोकज्ञो भवेन्मूर्ख तुल्यः
-कौटिल्य
जो शास्त्र को जानता है, लोक को नहीं जानता वह मूर्ख के समान है।

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जो लोग उसूलों के पाबंद हुआ करते
वे मुश्किल से मिलते हैं, होते वे कम हैं
जो बेपेंदी के, उनकी संख्या बहुत बड़ी
दुर्भाग्य यही, उनको आदर देते हम हैं।
-श्रीकृष्ण सरल
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जिन च़रागों को हवाओं का खौफ नहीं
उन च़रागों को बुझने से बचाया जाए
घर से मस्ज़िद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
-निदा फाज़ली
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भई सूरज !
ज़रा इस आदमी को जगाओ
भई पवन !
ज़रा इस आदमी को हिलाओ
यह आदमी
जो सोया पड़ा है।
-भवानी प्रसाद मिश्र
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पहली पंक्ति लिखी विध्ाि ने
जिस दिन कविता की
उस दिन पहला वृक्ष स्वयं
उत्पन्न हो गया
प्रथम काव्य है वृक्ष
विश्व के पहले कवि का।
-रामध्ाारी सिंह दिनकर
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विरोध्ा अपना जताने का तरीका पेड़ का भी है
जहाँ से शाख काटी थी वहीं से कोंपलें निकलीं
-कमलेश भट्ट कमल
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वे खुद ही जान जाते हैं बुलंदी आसमानों की
परिंदों को नहीं तालीम दी जाती उड़ानों की
-कमलेश भट्ट कमल
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हमने वर्षों विष पिलाकर आज़माया है बहुत
अब हमें भी विष पिलाकर आज़मायेगी नदी
-कमलेश भट्ट कमल
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